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हमारी भारत माता फिर गुलामी में फँस रही है
आँख वालों को इसकी तस्वीर दिख रही है ॥
शैतान की तो देखो सल्लतनत बढ रही है
सन्तान भारत मां की आपस में लङ रही है ॥
हम राज देते है जिनके हाथो मे गुलामी की बू आती है उनकी बातो मे
काटने को सिर हमारा उन्ही के हाथो मे तलवार लग रही है
नेता देखो अपने दल बना रहे है इन भेडियो से हम भी हाथ मिला रहे है
वोटो की तो भईया अब पैठ लग रही है
हम जिन्दा तो है लेकिन जीने का ढंग कुला बैठे है 

हम अपना रंग रूप भुला बैठे है 
लडकियो के देखो जींस चढ रही है
हमारी भारत माता फिर,
शिक्षा का तो अब माहोल बिगड गया है

 किसी से न आती हिन्दी कोई अग्रेज बन गया है
 पास होने की सबको गारन्टी मिल रही है हमारी भारत माता फिर……………
भ्रष्टाचार देखो बढ गया है ऐसे
अमावस की रात मे अँधेरा बढ गया हो
 जैसे 
भ्रष्टाचार को मिटाने वाली हर आवाज दब रही है हमारी भारत माता फिर…………………
कागज पर देखो सडक बन जाती है पक्की 
हकीकत मे इन पर चलो तो बह जाती है नक्की
जबकि गिनो एक सडक एक साल मे कितनी बार उखड रही है हमारी भारत माता फिर………….
मेरा जीवन समाज को समर्पित है।
मेरी पूरी जिन्दगी प्रभू को अर्पित है॥
मुझ से चाहे कोई कुछ भी कहे फिर भी किसी से नही वेरु खी।
ये आत्मा तो हर जन्म में रहेगी परमात्मा के सामने झुकी
और आगे क्या कहू अब भारत माँ को देख मेरी आत्मा रो रही है।
हमारी भारत माता फिर गुलामी में फंस रही है॥
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